दुर्गा चालीसा || Durga Chalisa || 🙏
दोहा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहुँ लोक फैली उजियारी॥
चौपाई
शशि ललाट मुख महा विशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धर्यो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़ कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरि जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावती माता।
भुवनेश्वरी बगला सुखदाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोहत आहे।
रखवारी करि सदाहिं तुम्हारे॥
लाय गोद छवि अति सोहै।
सुत निहाल माता जब होई॥
शम्भु आदि जगत के रचता।
सुनि वाणी तुम्हरे गुण गाता॥
कह कंकर जब हरसौं ध्यावा।
तेहि अघ काल नहीं निकट दवा॥
जो भी तुमको ध्यान लगावत।
रोग दोष भय दूर भगावत॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जनम-मरण ताकौ छूटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहीं सुमिरो तुम्ह को॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछतायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहीं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावै।
रिपु मूरख मोहि अति डरावै॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥
जब लगि जियूं ध्यान तुम्हारा।
कैसें मिलें सुख प्रभु बस तारा॥
सांसारिक सुख सभी मिटावो।
मोहि मातु पूर्ण कर पावो॥
दोहा
जयति जय अम्बे जगदम्बे मंगल कारणी।
नित नव निरंजन गौरी, त्रिभुवन तारिणी॥
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